History of hindi writer premchand in hindi
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, को बनारस के पास लमही नामक गाँव में एक किसान परिवार में हुआ था। नाम रखा गया धनपतराय श्रीवास्तव। पिता का नाम मुंशी अजायबलाल और माता का नाम आनंदी देवी था। किसानी से गुज़ारा न होता था तो पिता ने डाकख़ाने में 20 रुपए पगार पर मुंशी की नौकरी कर ली थी। सात वर्ष के थे तो माता का देहांत हो गया और पिता ने दूसरा विवाह कर लिया। पंद्रह की आयु में उनका विवाह करा दिया गया और सोलह की आयु में पिता चल बसे।
उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव के मदरसे में हुई। गाँव में रहते थे और हाई स्कूल की पढ़ाई करने शहर जाते थे। ट्यूशन पढ़ाते थे और रात में कुप्पी जलाकर ख़ुद पढ़ते थे। दसवीं पास कर कॉलेज में दाख़िला लिया। मेहनत बहुत करनी पड़ती थी। हिसाब की परीक्षा में दो बार फ़ेल हुए। फिर शहर में रहने लगे। एक वकील के लड़के को ट्यूशन पढ़ाते थे और अस्तबल के ऊपर कच्ची कोठरी में रहते थे। पढ़ने-लिखने का चस्का पहले ही लग चुका था। उन्होंने स्वयं लिखा है, ‘‘इस वक़्त मेरी उम्र कोई तेरह साल की रही होगी। हिंदी बिल्कुल न जानता था। उर्दू के उपन्यास पढ़ने का उन्माद था उन दिनों मेरे पिता गोरखपुर में रहते थे और मैं भी वहीं के मिशन स्कूल में आठवीं में पढ़ता था, जो तीसरा दरजा कहलाता था। रेती पर एक बुकसेलर बुद्धिलाल नाम का रहता था। मैं उसकी दूकान पर सारे दिन तो बैठ न सकता था, इसलिए मैं उसकी दूकान से अँग्रेज़ी पुस्तकों की कुंजियाँ और नोट्स लेकर अपने स्कूल के लड़कों के हाथ बेचा करता था और इसकी एवज़ में उपन्यास दूकान से घर लाकर पढ़ता था। दो-तीन वर्षों में सैकड़ों ही उपन्यास पढ़ डाले होंगे’’
हिंदी-उर्दू में प्रेमचंद की विशेष ख्याति एक उपन्यासकार के रूप में है। उन्हें हिंदी समाज में प्रेमपूर्वक ‘उपन्यास सम्राट’ पुकारा जाता है। उनके उपन्यास समाज के विभिन्न पक्षों को उद्घाटित करते हैं। हिंदी उपन्यास के इतिहास में उनके के समय को ‘प्रेमचंद युग’ के नाम से जाना जाता है। वह हिंदी के अत्यंत लोकप्रिय कहानीकार भी हैं। जयशंकर प्रसाद के साथ वह हिंदी कहानी की विकास यात्रा में एक युग का निर्माण करते हैं। उन्होंने उद्देश्यपरक कहानियाँ लिखी हैं जहाँ जीवन की सच्चाई को भाषा की सहजता-सरलता में प्रकट किया है। नाटक विधा में भी उनकी रुचि रही थी और इस क्रम में उन्होंने तीन नाटकों की रचना की, जबकि कुछ नाटकों का अनुवाद भी किया। लेखन के आरंभिक दौर में उन्होंने टैगोर की कहानियों का भी अनुवाद किया था।
प्रेमचंद ने विपुल मात्रा में वैचारिक गद्य भी लिखा जो उस दौर की प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। स्वयं एक संपादक और पत्रकार के रूप में उन्होंने समय और समाज के मसलों पर गंभीर टिप्पणियों के रूप में योगदान किया।
प्रेमचंद की रचनाओं का देश-विदेश की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है। उनकी रचनाओं पर फ़िल्म, टीवी सीरीज़ का निर्माण हुआ है और उनके नाट्य-मंचन किए गए हैं।
प्रमुख कृतियाँ
उपन्यास : सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मंगलसूत्र (अपूर्ण)।
कहानी-संग्रह : सप्तसरोज, नवनिधि, समरयात्रा, मानसरोवर (आठ खंडों में प्रकाशित)।
चर्चित कहानियाँ : दो बैलों की कथा, ईदगाह, ठाकुर का कुआँ, पूस की रात, कफ़न, बूढ़ी काकी, पंच परमेश्वर, दो बैलों की कथा, बड़े घर की बेटी, नमक का दारोग़ा, कर्मों का फल, बलिदान, शतरंज के खिलाड़ी।
नाटक : संग्राम, कर्बला, बलिदान।
बाल-साहित्य : रामकथा, कुत्ते की कहानी, मनमोदक।
कथेतर साहित्य: प्रेमचंद: विविध प्रसंग, प्रेमचंद के विचार (तीन खंडों में प्रकाशित) साहित्य का उद्देश्य, चिट्ठी-पत्री (दो खंडों में पत्रों का संग्रह)।
अनुवाद : (अहंकार) अनातोल फ़्रांस के नॉवेल ‘दइस’ का भावानुवाद, (आज़ाद कथा) रतन नाथ धर सरशार के ‘फ़साना-ए-आज़ाद’ का अनुवाद, (चाँदी की डिबिया) जॉन गाल्सवर्दी के ‘द सिल्वर बॉक्स’ का अनुवाद, टॉलस्टॉय की कहानियाँ।
जीवनचरित : दुर्गादास, महात्मा शेख़सादी।